
पुजा मे भेद भाव : गांव के बिचो बिच एक मंदिर था
शहर से बहुत दुर एक गांव था उस गांव के बिचो बिच एक माँ काली का एक मंदिर था । उस गांव मे हर कास्ट के लोग रहते थे । उस मंदिर की देखरेख करने के लीए एक पुजारी रहते थे । उस मंदिर का एक नियम था की मंदिर के अंदर छोटे कास्ट के लोग नही जा सकता। वहा के लोग का कहना था ।
की अगर छोटे कास्ट के लोग अगर माँ को छु देंगे तो माँ अछूत हो जाएगी और माँ क्रोध हो जाएगी और उनके कुप्रभाव का भुगतान पुरे गांव को भुगतना पङेगा । इसी डर से छोटे कास्ट के लोग अन्दर नही जाते थे । अगर किसी को पुजा करना हो तो मंदिर के बाहर से ही करता था ।
ऐसी परंपरा का बिद्रोह कैसे हुआ
आखिर एक दिन ऐसा भी आही गया जो ऐसी परंपरा का कोई बिद्रोह करने के लीए समाज मे आगे आया । उसी गांव के रहने वाला एक गरीब छोटे कास्ट का लङका था ।वो गरीब जरूर था लेकिन उसका मन लेकिन वो मन का साफ और और एक सचा इन्सान था । एक दिन रात को वह खाना खाकर जब सो रहा था ।
तो सपने मे माँ काली उसे दर्शन दी और बोली की सारे गांव मे सबसे सचा इन्सान तुम ही हो ईस लीए कल से मंदिर के अंदर आकर मेरा सबसे पहले मेरा पुजा पाठ सिर्फ तुम ही करोगे । अगर ऐसा नही हुआ तो मै ईस गांव को हमेसा हमेसा के लीए चला जाउँगा । इस गांव का मेरा पहला पुजारी सिर्फ तुम ही हो और सारे गांव वालो को इस भेद भाव से मुक्त करावोगे। जरुरत पङने पर मै सदेव तुम्हारा साथ दूंगा
सचे भक्त की परीक्षा कैसे हुआ
अगले दिन जब उस लङके की नीन्द खुली तो सबसे पहले नहा धोकर फुल और जल लेकर मंदिर पहुचा और मंदिर का दरवाजा खोलकर माँ काली का स्पर्धा भाव से पुजा पाठ किए और फिर अपने घर लौट आए। कुछ देर बाद जब पुजारी उस मंदिर मे पहुचे तो देखकर बहुत क्रोधित हुए की यहा पर मुझसे पहले माँ की पुजा करने का दुस्साहस किसने कर दिया ।
पंडित जी गुस्से मे आकर पुरे गांव मे ये बात फैला दीये सभी गांव वाले ईस बात से नाराज हो गए की ऐसी किसने हिम्मत की । धीरे धीरे आखिर ईस बात का पता लग ही गया । पुरे गांव वाले मिलकर उस लङके को समाज मे लाया गया और उस लङके से सबसे पहले पुजा करने का कारन पूछा गया ।
तो लङका हिम्मत कर के बता ही दिया की मां के पुजा मे कभी भी भेद भाव नही करना चाहिए क्यो की माँ जात पर नही सचे और साफ मन वाले पर प्रसन्न रहती है । तभी गांव वाले बोले की अगर तुम अपने आप को सचा और साफ मन वाले समझता है तो काली माँ की मुर्ती यहा पर प्रगट कर दो ।
इस बात पर लङका पहले पंडित जी को लाने को कहा । इस बात पर गांव वाले बोले की ठीक है पंडित जी लाएंगे । अगर तुम नही लाए तो सर मुङवाकर गांव छोङना पङेगा । लङका ने बात मान लिया। गांव वाले पंडित जी को करने को कहा । इस बात पर पंडित जी ने माँ की अर्जी लगाई पर मां की मुर्ति नही प्रगट हुई।
फिर उस लङके ने अर्जी लगाई तभी मां की मुर्ति उसी समय प्रगट हो गई ये सभ देखकर गांव वाले दंग रह गए और माँ की खुब जयकार हुई और उस दिन से माँ के पुजा पाठ मे भेद भाव सब करना बंद हो गया । अब से सभी लोग मंदिर के अंदर जाकर पुजा कर सकते थे ।