
पटाखा : पटाखा छोड़ने से मन नहीं भरता
हाल ही में दिवाली बीती थी मेरे पापा मेरे लिए जलने वाला कोई भी पटाखा नहीं लिए थे । मैं ने पापा से पटाखा खरीदने के लिए जिद भी किया था लेकिन यह कह कर जलने वाला पटाखा नहीं खरीदे कि उससे छोटे बच्चों की हाथ पैर जल जाती है । बहुत जिद करने के बाद सिर्फ छूट चूरी और छोटा आलू बम खरीदे थे ।

मां से भी कहा तो मा बोली , बेटा हम तुम्हे अच्छी अच्छी मिठाई खिला देंगे लेकिन पटाखा नहीं । अब तो छठ भी आगया था । मेरे मुहल्ले के सारे लड़के पटाखा खरीदे थे और उसी वजह से अपने उमंग में रहते थे । मैं उन सबसे अलग हट कई मायूस हो रहा करता था । क्यों कि यही सोचता था कि कस में भी सारे बचे की तरह पटाखा जलता ।
अब तो छठ का इंतजार था
दिवाली तो बीत गई अब छठ बाकी था यही सोचता था कि शायद पापा दिवाली में नहीं तो कम से कम छठ में तो पटाखा खिलाएंगे । एक दिन पापा मुझे मार्केट लेकर गए । तेवहार की वजह से मार्केट में पूरा भीड़ भाड़ था ।
वह मुझे एक अच्छे से कपड़े के दुकान में ले गए।
वहां दुकानदार से बोले , मेरे बेटे के लिए बढ़िया बढ़िया ड्रेस दिखाइए । दुकानदार बढ़िया बढ़िया ड्रेस देखने लगा । पापा उसमें से दो ड्रेस मेरे लिए खरीदे फिर अपने लिए और मा के लिए दो साड़ी भी खरीदे । वह से आने के बाद एक अच्छे से रेस्टोरेंट में हम लोगों को चाउमीन और छत भी खिलाए लेकिन पटाखा खरीदने को कहावतों पापा ने साफ माना कर दिया । फिर वहां से भी उदास हो कर पापा के साथ घर आगया ।
अब लगता है कि अपना व्यवस्था खुद करना होगा ।
पापा को पटाखा नहीं खरीदने पर अब मैं सोचने लगा । अब किसी ना किसी तरह मुझे ही पटाखा छोड़ने का बेवस्था करना पड़ेगा । यही सोच कर तीन दिन पहले से मम्मी से और कभी पापा से मिठाई के नाम पर पैसा मांगता था और मिठाई ना खाकर पटाखा के लिए बटोर कर रखने लगा ।
छठ के दिन सारे लड़के पटाखा जला रहे थे मैं भी अपने पापा मम्मी से चुपके खरीद कर ले गया था और उन लोगों से हट कर अपने दोस्तो के साथ मिलकर खूब पटाखा जलाया । मैं भी पावली में नहीं तो कम से कम छठ में पटाखा जला कर अपने दोस्तो के साथ खूब मस्ती किया ।