
पढ़ाई में नौटंकी : खेल में कैसे समय बीत जाता था
मेरा भी बचपन में पढ़ाई में मन नहीं लगता था । पूरा दिन अपने दोस्तो के साथ खेलने में बीता दिया करता था ।दोस्तो के साथ कभी गोली डांटा , कबाडी तो कभी आइस बेस खेलते रहता था । कभी कभी तो चीकू और छुपा छुपी खेलने में पूरा दिन बीत जाता था ।

इसके लिए रोज घर पर हमे बहुत डॉट पड़ता था । क्यों कभी कभी बिना खाए हुए ही पूरा दिन दिया देता था ।
जब कभी घर पर रहता था तो अपने पापा मम्मी के मोबाइल में कटुन देखा करता था । मम्मी अगर कार्टून देखने से मन करती तो मैं जिद कर के रोने लगता था ।
स्कूल से बोर हो गया तो क्या करता था ?
फिर एक दिन पापा ने मेरा नाम स्कूल में लिखवा दिया ।
शुरू में तो स्कूल जाना कुछ दिन बहुत अच्छा लग रहा था । लेकिन बाद में अपने पीठ पर किताब का बेग लेजाना अब बोझ लगने लगा । ऊपर से टीचर की डाट और ऊपर से डिस्प्लिन में रहना । इंसान से बोर होने लगा ।
इस लिए जब भी स्कूल का टाइम होता था तो मैं चुपके से घर से बाहर चला जाता था और घर वाले मुझे ढूंढते रहते थे । घर से बाहर छुपकर बैठा रहता था और जब स्कूल का टाइम खत्म हो जाती थी तब मैं। घर आता था । इसके लिए भी ममी मुझे डांटती थी ।
स्कूल जाने से बचने के लिए क्या क्या बहाना करता था।
जब मैने देखा कि घर से बाहर जाने पर मम्मी से डेट सुननी पड़ती है इसलिए मैं दूसरा बहाना ढूंढने लगा ताकि मैं स्कूल जाने से बच सके फिर एक दिन मेरे दिमाग में एक उपाय सूझी और फिर एक दिन स्कूल जाने के लिए जब मम्मी तैयार कर रही थी तो पेट दर्द का बहाना बनाया ।
दर्द का बहाना से स्कूल जाने से बच गया । इसी तरह रोज कोई न कोई बहाना बनाया करता था और स्कूल का टाइम खत्म होने के बाद ठीक हो जाता था । एक दिन अपने दोस्तो से ये बहाना करना बता रहा था तभी मेरे पापा सुन लिया । अब उस दिन के बाद मेरा बना बनाना कम नहीं करता था और मुझे मजबूरी में रोज स्कूल जाना पता था ।