
कसूर : ट्रेन में भी हर तरह के लोग मिला करते थे ।
मैं एक दिन ट्रेन का सफर कर रहा था ।अपने कुछ कम के सिलसिला न दिल्ली जा रहा था । मैं रिजर्वेशन बोगी में बैठा था । ट्रेन चल रही थी और बीच बीच में कुछ न कुछ समान बेचने के लिए आता रहता था । मैं भी भी सौ ग्राम बादाम खरीदकर खाते हुए अपना टाइम पास कर रहा था।

कुछ देर बाद तालियों की आवाज सुनाई दिया । जब उधर देखा तो दो छले तालिया बजाते हुए लोगो से पैसे मांग रही थी और लोग भी बड़े आश्रम से उसे दस रुपया दे दिया करते थे । अगर कोई प्यार से इसे पैसा नहीं देता तो वो जबरजस्ती भी उन लोगों से ले लिया करती थी ।
लोग मजबूरों की मजबूरी नहीं समझते ।
छक्के लोग के जाने के बाद मैं ही अपने सीटपर बैठा था
तभी मैने देखा एक औरत अपने साथ एक छोटा बचा लिए उसी बोगी में लोगों के सामने अपना हाथ फैलाए भीख मांग रही थी । लेकिन लोग छक्के को दस दस रुपया तो दिए थे लेकिन इस बेचारी को कोई एक रुपया भी नहीं देता था ।
दस लोगों से मांगने पर कोई एक रुपया या दो रुपया दे देता था । इसके साड़ी भी कई जगह फटी थी । बचा के शरीर पर एक कुर्ता और पैर में चप्पल भी नहीं थी । लेकिन फिर भी इसके मजबूरी और गरीबी को कोई नानी देख रहा था हा उस औरत के फटे कपड़े में उसका शरीर लोग जरूर देख करते थे ।
बिना गलती किए किसी का क्यकसुर होता है ।
हमें उस औरत और बचे को देख कर बड़ा दुख हुआ और उस मासूम छोटा बचे को । देख कर यही सोच था कि इस छोटे से बचे की क्या गलतियों जो कि जो उमर पढ़ने लिखने और खेलने कूदने की है उस उमर में बिना कपड़ा सिर्फ चढ़ी पर अपने मा के साथ भीख मांग रहा है ।
मैने उसे पास बुलाकर ट्रेन में बिक रही खाने वाली चीज खरीद कर दिया और दोनों के लिए कपड़े खरीदने का भी पैसा दिया । फिर यहीबसोच रहा था कि इंसान की कोई गलती नहीं रहती गरीबी ही उसकी गलती रहती है जो उसे जिंदगी भर सजा देती रहती है ।