
धरती और स्वर्ग : पार्वती जी का भी मन कर दिया धरती लोक घूमने को ।
एक बार की बात है पार्वती जी पहाड़ों पर रह कर बोर हो गई थी । पार्वती जी यही सोच रही थी कि धरती पर मनुष्यों का जीवन बहुत अच्छा है । जो कि शहर बाजार और गांव घर पूरे समाज के बीच रहकर अपना जीवन हसी खुशी से साथ बिताते है उन लोगों का जीवन में सिर्फ खुशियां ही खुशियां है ।

यही सभ पार्वती जी के मन में बात चल रही थी । तभी एक दिन पार्वती जी अपने पति संकट भगवान से पूरा धरती लोक घूमने के लिए बोली लेकिन शंकर जी माना कर दिए । शंकर भगवान के माना करने पर पार्वती जी जिद करने लगी । फिर भी शंकर जी नहीं माने ।
पार्वती जी के जिद के कारण शिव जी इन्हें धरती पर लाए
पार्वती जी को धरती लोक घूमने का मन था । इसलिए अपना जिद पूरा करवाने के लिए रूठ कर बैठ जाती है । ना शिव जी से बोल रही थी ना ही उनके लिए भंग पीस कर दे रही थी । शंकर भगवान पार्वती जी को इस तरह से रूठ कर बैठना देखकर आखिर धरती लोक घुमाने के लिए बोल ही दिए ।
पार्वती जी घूमने जाने की बात सुनकर खुश हो गई । फिर शंकर भगवान और पार्वती जी मनुष्य का रूप बदलकर कैलाश पर्वत से धरती लोक आ गए । फिर दोनों लोग घूमना शुरू कर दिए । पार्वती जी शिव जी से बोली कि हे प्रभु चलिए पहले गांव नगर घूमते है ।
धरती लोक घूम के पार्वती जी धरती लोक का जीवन जान गई ।
फिर दोनों लोग एक गांव में चले जाते है कुछ दूर जाते ही देखते है कि दो भाई आपस में लड़ाई झगड़ा कर रहे थे । पूछने पर दोनों एक दूसरे की गलती बता रहे थे । फिर वहां से दूसरे गांव में गए तो देके की एक औरत बैठ कर रो रही थी तब शिव जी और पार्वती जी इसका कारण पूछे तो पता चला इसके घर में कोई मर गया है ।
इसी तरह से घूमते हुए उन लोगों को यही देखने को मिला कि कही खुशी है तो बहुत सारे ग़म भी है । कही ना कही , कोई ना कोई , किसी ना किसी कारण से परेशान ही है । फिर धरती लोक घूमने के बाद शिव जी और पार्वती जी कैलाश पर्वत गए तो शिव जी पार्वती जी से पूछे की कैसा लगा धरती का मनुष्य जीवन । तब पार्वती जी बोली की धरती लोक का भी जीवन इतना आसान नहीं है मनुष्य का भी जीवन बहुत सारे कठिनाइयों से भरा होता है ।