
सुख और दुख : कभी कभी जीवन में बहुत कठिनाइयां होती है ।
एक गांव में उमा नाम की एक दुखियारी औरत रहती थी । वो अपने पति और दो छोटे छोटे बचे के साथ एक झोपड़ी में किसी तरह बहुत दुख के साथ अपना गुजारा कर रही थी । क्यों कि पति तो था लेकिन वो पैरालाइसिस का रोगी हो गया था वह कोई भी काम धंधा नहीं कर सकता था ।

बचे भी अभी बहुत छोटे थे इसलिए घर का सारा खर्चा बस उमा को ही उठाना पड़ता था । इसके लिए उमा अपने गांव मुहल्ले में लोगों के यहां घर बर्तन कर के इससे जो भी मिलता उसी से अपना और अपने घर का गुजरा और पति की दवाई भी करती थी ।
एक औरत दुख में भी बचे की भलाई ही सोचती है
उमा इतनी कठिनाई में भी और उसी कमाई से कुछ पैसा बचाकर अपने बचे को भी पढ़ाया करती थी । वो एक औरत होकर भी हिम्मत नहीं हरि थी । उमा यही सोचती थी कि भले एक ही टाइम खायेंगे लेकिन अपने दोनों बचे को जरूर पढ़ाएंगे । बचे भी अपने मा की मजबूरी समझते हुए किसी भी बात की जिद नहीं करते थे ।
धीरे धीरे दोनों बचे अब बड़े हो गए थे और ये पढ़ाई के साथ साथ अब अपने मा का कुछ सहारा भी बनने लगे थे । ये अपने से छोटे बच्चों को ट्यूशन पढ़ाकर अब अपने पढ़ाई का खर्च खुद ही उठाया करते थे । इसलिए अब इसकी मा का बस घर के खर्चा का टेंशन था ।
एक दिन दुख काटने वाला इंसान सुख भी करता है ।
उमा के दोनों लड़के अपना पढ़ाई पूरी कर के नौकरी की तैयारी कर रहे थे । फिर काफी मेहनत और दौड़ धूप करने के बाद दोनों को सरकारी नौकरी लग गई । इधर अपने दोनों बेटे की नौकरी लगते ही उसकी मां उमा की खुशी का ठिकाना नहीं रहा । वो बहुत खुश हुई क्यों कि अब उसकी दुख का दिन दूर हो रहे थे ।
अब दोनों भाई मिलकर धीरे धीरे बहुत पैसा कमाए और अपने झोपड़ी की जगह अच्छा खासा एक घर भी बनवा दिया । उमा भी अब दूसरे के यहां काम करना छोड़ के अपने घर में आराम से रहने लगी और अपने दोनों बेटे की शादी कर के सुख की जीवन बिताने लगी । अब बहु भी इनकी सेवा पानी में लगी रहती है ।
यह पात्र और घटना काल्पनिक है
लेखक – रविकांत मोहि