
स्वाभिमान : जरूरी नहीं कि अपना ही हर भाई एक ही जैसा हो ।
एक गांव में दो भाई रहते थे राम धनी और सी धनी । दोनों भाई बहुत गरीब थे इसलिए राम धनी अपना मेहनत मजदूरी कर के अपना परिवार का भरण पोषण करते थे । लेकिन शि धनी को मेहनत करने में थोड़ा भी मन नहीं लगता था । बस अमीर लोगों की चापलूसी कर। के ही अपना काम चला रहा था ।

राम भानी अपने भाई शी धनी को बहुत समझाया कि तुम अपना कम करो । लेकिन शि धनी अपने भाई से यही बोलता था कि मैं तुम्हारे जैसा छोटा काम नहीं करना चाहता हु। मैं बड़े बड़े लोगों के साथ रहता हूं । मेरा बड़े बड़े लोगों के साथ उतना बैठना रहता है । तुम्हारी तरह मजदूर नहीं हु ।
कुछ लोग दूसरों की जी हजूरी में ही अपना मन लगाते है ।
राम धन मजदूरी ही करता था लेकिन स्वाभिमान के साथ जीता था । इसका उठना बैठना भी बराबर वाले लोगों के साथ रहता था और अपने परिवार को भी स्वाभिमान के साथ घर में रखता था । राम धनी इसी में खुश था । अपने भाई की तरह बड़े लोगों की जी हजूरी नहीं करता था ।
बड़े लोग भी राम धनी को देखकर जलते रहते थे क्यों कि अपने भाई की तरह उन लोगों की गुलामी नहीं करता और नही अपने घर में बुलाता । वो लोग शि धनी के घर में भी घुस जाते थे और इसके बीबी पर बुरी नजर भी रखते थे । अगर इसके बीबी अपने पति शि धनी से उन लोगों की नियत के बारे कहती थी तो ये नहीं मानते ।
अपना स्वाभिमान खोने का अंजाम जरूर मिलता है ।
शि धनी अपने बीबी की बात को नहीं मानता और उल्टा इसे ही डांटता रहता था । वो लोग शि धनी के घर रोज ही आया करते थे और इसके बीबी को गलत नियत से देखते हुए इसे उल्टा सीधा बोली भी बोलते और कभी कभी गलत जगह पर हाथ लगा दिया करते थे । वो लोग शि धनी के साथ साथ इसके बीबी बच्चों से भी अपना गुलामी करवाते थे ।
शि धनी उन लोगों की गुलामी को ही अपना स्वाभिमान मानता था क्यों कि उन्हीं लोगों के पैसे से इसका घर का खर्चा चलता था । एक दिन वो लोग अपनी हदे पार कर दी शि धनी के बीबी को गोद में उठा कर किस करने लगे तभी शि धनी देख लेता है और इन लोगों की ऐसी हरकत पर गुस्से से बोलने लागा । तभी वो सभ शि धनों को बोलने पर इसे मारने लगे और कहते की मेरा तलवा चाटने वाले आज मुझसे ही ऊंचा आवाज में बोलते हो ।
वो लोग शि धनी को बहुत मार मारने के बाद इसे गाली देकर चले जाते है । शि धनी बैठ कर रोने लगा और अपने काम पर पछतावा करने लगा कि उनलोगों की गुलामी करने का अंजाम यही होगा । शि धनी उस दिन से उनलोगों की गुलामी करना छोड़ अपने भाई की तरह मजदूरी करने लगा और स्वाभिमान से जीने लगा ।