
हौसला 3 : जिसका हौसला बुलंद हो उसका जितना तय हो जाता है ।
हरि पुर गांव के जमींदार अपने गुरूर मे अपना हार बरदाश नाही किया । गिरधर जमींदार के चुनौती और शर्त के मुताबिक कमजोर होते हुए भी उनके पहलवान को कुश्ती में हरा दिया । जमींदार अपने पहलवान को हारने के बाद गुस्से से आग बबूला हो जाता है लेकिन बाकी गांव वाले जमींदार के पहलवान को गिरधर के द्वारा हारते देख बहुत खुश हो जाते हैं।

गिरधर की जमींदार के खिलाफ पहली जीत पर हरि पुर गांव के लोगों का मनोबल अब धीरे धीरे बढ़ने लगा । लेकिन जमींदार के मन में यही चल रहा था कि गिरधर कुश्ती तो जीत गया लेकिन दौड़ का कंपटीशन किसी तरह हराना ही है । यही सोच कर प्लान बनाने लगा ।
किसी कमजोर से हारने के बाद लोगों का गुस्सा और भी बढ़ जाती है।
जमींदार अपने लोगों के साथ मिलकर षड्यंत्र रचने लगा कि गिरधर किसी भी हाल में जितना नहीं चाहिए चाहे जो भी हो जाए । जमींदार के इस बात इसके लोग राजी हो गए कि चाहे छल से या कपट से जैसे भी हो गिरधर को दौड़ की रेस मे किसी भी हाल में नहीं जितने देना है । फिर कुछ दिन बाद दौड़ रेस का कंपटीशन का दिन आही गया ।
सभी गांव वाले बहुत उत्साह के साथ दौड़ के दिन देखने के लिए भीड़ लगाए हुए थे । लेकिन उधर जमींदार के आदमी रस्ते में ही मोटर साइकिल से गिरधर का एक्सीडेंट कर देते हैं । एक्सीडेंट होने के बाद गिरधर दौड़ में जाने लायक नहीं था । उधर जमींदार एक्सीडेंट करवाकर बहुत खुश था और घोषणा कर दिया कि गिरधर इस दाऊद मे नहीं आ सकता तो उसकी हार मानी जायेगी।
हौसला और जुनून ही जीत दिलाती है ।
सारे गांव वाले उदास होकर जाने ही वाले थे कि गिरधर जख्मी हालत में ही वहा आ जात है। सभी लोग देख कर चकित हो जाते है । गिरधर दौड़ करने के लिए कहने लगा लेकिन इसकी हालत देख कर सभी लोग इसे मना करने लगे लेकिन ये नहीं माना फिर दौड़ शुरू हुआ । गिरधर दौड़ने की हालत में नहीं था ।
लेकिन हिम्मत नहीं हारा था और उसी हिम्मत की वजह से गिरधर दौड़ में जीत भी गया । जमींदार को इसके जमीन की कागज वापस करनी ही पड़ी । गिरधर के साथ साथ सारे गांव वाले भी खुश हो जाते है और गिरधर का मनोबल देख कर सारे गांव वाले का भी मनोबल बढ़ गया और धीरे धीरे ये सभ भी जमींदार के जुल्म के आगे आवाज उठाना सुर कर दिया ।