ऊची सोच : सोच ही इंसान को नीचा गिराती है और ऊंचाई तक पहुंचाती है ।

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ऊची सोच : सोच ही इंसान को नीचा गिराती है और ऊंचाई तक पहुंचाती है ।

एक गांव में दो बहुत ही गरीब परिवार रहते थे । जो कि दोनों मजदूरी कर के किसी तरह अपना और अपने परिवार का गुजारा करते थे । उस मजदूर का एक का नाम रोहन था और दूसरे नाम परवीन था । परवीन के चार लड़के  थे और रोहन का सिर्फ एक ही लड़का था ।

परवीन बहुत खुश था कि हमारे तो चार लड़के है बड़े होकर हमारे साथ मजदूरी में काम करने जायेंगे तो चार गुना ज्यादा पैसा हमारे घर में आएगा । लेकिन रोहन यही सोचता था कि मैं तो मजदूरी कर के किसी भी तरह अपना और अपने परिवार का गुजारा करता हु लेकिन अपने बेटे को कभी भी मजदूरी नहीं करने देंगे ।

अपने आप चाहे जैसे भी हो लेकिन अपने औलाद पर ध्यान जरूर देना चाहिए ।

रोहन कम पैसा में ही अपना गुजारा करने लगा लेकिन अपनी जरूरत और इच्छा को मार कर अपने बेटे को अच्छे से स्कूल में पढ़ने लगा । रोहन के लड़के की पढ़ाई की वजह से रोहन को और भी ज्यादा गरीबी झेलनी पड़ी और कभी कभी तो रात को भूखे पेट ही सोना पड़ा लेकिन अपने बेटे की पढ़ाई में कोई कमी नहीं की ।

उधर परवीन अपने लड़को के बारे ज्यादा कुछ नहीं सोचता था । वो यही सोचता था कि बहुत ज्यादा टेंशन रखने से क्या फायदा । जीवन में खाओ पियो और मौज करो । बाकी इससे ज्यादा कुछ भी नहीं है । परवीन के लड़के स्कूल में पढ़ाई करने नहीं जाते थे। वो चारों गांव में ही इधर उधर बस घूमते रहते थे ।

परिश्रम का फल एक दिन जरूर मिलता है ।

धीरे धीरे उन दोनों के लड़के बड़े हुए और इस वजह से परवीन बहुत खुश था कि अब उसके साथ उसका बेटा साथ देगा । परवीन के चारों लड़के इसके साथ काम करने जाने लगे । इसलिए परवीन के यहां अब चार गुना पैसा आने लगे । ये यही सोचता था कि इससे ज्यादा और क्या चाहिए ।

उधर रोहन का भी लड़का बड़ा होकर पढ़ाई पूरा कर के एक अच्छे पद वाली नौकरी की तैयारी कर रहा था । बहुत मेहनत भी करता था । फिर कुछ दिन बाद रोहन के लड़के को नौकरी मिल गई और वो डिस्टिक मजिस्टेट बन गया । ये सुन कर रोहन और गांव वाले बहुत खुश हुए । लेकिन परवीन अब पछताने लगा कि कास हम भी अपने लड़के को पढ़ाए होते तो आज मेरे साथ मजदूरी करने की बजाय कुछ अच्छा काम करते ।

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