सबसे बड़ा बोझ : जानिए कि इंसान को सबसे बड़ा बोझ कब महसूस होता है ।

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एक गांव में सरजू नाम का एक गरीब इंसान रहता था । उसे बचपन से ही घर की जिम्मेदारीया मिल गई थी । वो अपने परिवार का भरण पोषण करने के लिए मजदूरी का काम किया करता था । सरजू मजदूरी कर के भी अपने परिवार के हर खुशी का ख्याल रखता था ।

सरजू के दो लड़की थी जिसका नाम उमा और बिंदु था । इसके बांस को चलाने वाला बस एक ही कड़का था । जिसका नाम सोनू था । सरजू अपने तीनों औलाद को बहुत प्यार करता था । लेकिन अपने बेटे सोनू को सबसे ज्यादा प्यार दिया करता था । क्यों कि सोनू ही इसके बुढ़ापे का सहारा था ।

इंसान को अपना सारा उम्मीद अपने औलाद पर ही रहता है ।

सरजू अपने बेटे को प्यार से अपने कंधे पर बैठा कर रोज बजार में घुमाया करता था । ये दिन रात कठिन मेहनत कर के अपने बेटे सोनू को शहर में सबसे अच्छे स्कूल में नाम लिखवाया । ताकि ये बड़ा होकर पढ़ लिख कर एक अच्छा इंसान बन सके । समाज में इसकी एक अलग पहचान बने ।

सरजू अपने जीवन के कमाई का सारा पैसा अपने लड़के लड़की को पढ़ाने लिखाने और उन्हें पालने में लगा दिया । कभी भी इन लोगों में कोई कमी नहीं किया । धीरे धीरे सरजू के तीनों औलाद बड़े हुए । सरजू अपने दोनों बेटियों को अच्छा सा लड़का देख कर उन दोनों की शादी ब्याह कर करा दी।

दुनिया में अपने औलाद से प्यारा कुछ नहीं होता ।

सरजू अपने परिवार का बोझ ढोते ढोते थक गया था । लेकिन इसके लड़का अपना पढ़ाई पूरी कर के नौकरी की तैयारी कर रहा था । अब इसके दुख का दिन खत्म ही होने वाला था कि अचानक इसके बेटे सोनू की तबियत बहुत ज्यादा खराब हो गई । ये देखकर सरजू घबड़ा गया ।

इसे अच्छे से अच्छे हॉस्पिटल में इलाज करवाया । लेकिन सोनू नहीं बच पाया और उसकी मृत्यु हो गई । सरजू के ऊपर तो जैसे दुखो का पहाड़ ही टूट गया हो । वो रोते हुए कहने लगा कि मैं अपने परिवार का बोझ ढोते ढोते नहीं थका । लेकिन अपने बेटे के मौत का बोझ नहीं सह पाऊंगा । क्यों कि बेटे के मौत का बोझ सबसे बड़ा बोझ होता है ।

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