
वफादार दोस्त एक हिंदी कहानी है जिसमें की , एक गांव में दो दोस्त रहते थे जिसमें की एक का नाम श्रीधर और दूसरे का नाम गोपाल था । दोनों में बहुत गहरी दोस्ती थी। ये दोनों बचपन के ही साथी थे और अब दोनों बड़े होकर अपने काम में लग गए थे । दोनों की शादी ब्याह भी हो गए थे और बच्चे भी थे । लेकिन दोनों की दोस्ती कम नहीं हुई ।
दोनों एक दूसरे के बिना नहीं रह सकते थे । श्रीधर बहुत अमीर था और गोपाल बहुत गरीब , लेकिन दोनों में कभी भी कोई भेद भाव नही हुआ । श्रीधर के पास कई सारे कंपनियां थी , इसलिए गोपाल को भी एक कमानी देना चाहता था । लेकिन गोपाल स्वाभिमानी था इसलिए श्रीधर का कुंभी नहीं लेता था ।

मुसीबत मे लोग दोस्त को ही याद करते है ।
एक बार श्रीधर की तबियत बहुत खराब हो गई और उसे डॉक्टर भी जवाब दे दिया था । इसलिए श्रीधर एक बार गोपाल से कहा कि दोस्त मेरे मरने के बाद मेरे परिवार और कारोबार का देख भाल तुम ही करना । जब तक बच्चे उसे संभालने लायक न हो जाय । गोपाल भी उसे बिस्वास और आश्वासन दिया कि ठीक है ।
फिर कुछ दिन बाद श्रीधर की मृत्यु हो गई और गोपाल अपने दोस्त को दिए हुए बच्चन के मुताबिक उसके कंपनी और बच्चे की जिम्मेदारी उठाने लगा । श्रीधर के बच्चे को कोई दिक्कत न हो इसलिए उसी के घर में रहकर उन बच्चों को पढ़ाना लिखना और कामनी का हिसाब किताब सभ देख रख करने लगा ।
सच्चा दोस्त वफादारी ही असली पहचान होती है ।
गोपाल ईमानदारी से सभ कुछ देख भाल करते हुए एक पैसा का भी लोभ नहीं किया । फिर समय के साथ साथ श्रीधर के बच्चे बड़े हुए और पढ़ लिख कर जिम्मेदारी लेने के काबिल हो गए । तब एक दिन गोपाल श्रीधर के लड़के को बोला कि बेटा अब तुम लोग जिम्मेदारी लेने के काबिल हो गए हो ।
इसलिए तुम सभ काम संभालो और मै अपने घर चलता हु । लेकिन श्रीधर के लड़के बोले कि आप एक पिता के तरह हमलोगों का पूरा जिम्मेदारी उठाए फिर हमारे पिता के कंपनी को सम्भाल कर चलाए । आपका बहुत बड़ा एहसान है इसलिए आप हमेशा यही रहिए । लेकिन गोपाल नहीं माने और उन सभी को आशीर्वाद देकर खुशी खुशी अपने घर चले गए । सच्ची दोस्ती यही कहलाती है ।
लेखक – रविकांत मोहि