माहाकुंभ : महाकुंभ का मतलब क्या होता है ।

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एक बार भगवान शिव पार्वती जी के साथ धरती लोक का भ्रमण कर रहे थे । फिर कई जगह भ्रमण करने के बाद दोनों लोग प्रयाग राज नाम के एक जगह पर पहुंचे । प्रयाग राज जाते ही अचानक पार्वती जी की नजर वहा रास्ते में आते जाते लोगो की भीड़ पर पड़ी । जो कि जयकारा लगाते हुए जा रहे थे ।

पार्वती जी इतने सारे लोगों को जाते हुए देख कर बहुत चकित होकर शंकर जी से पूछी , कि प्रभु आखिये इतने सारे लोग जयकारा लगाते हुए कहा जा रहे है । तब शंकर जी मुस्कराते हुए बोले कि प्रयाग राज में तीन नदियों का संगम हुआ है जिसे महाकुंभ कहते है । ये सभ उसमें नहा कर भक्ति का ढोंग करने जा रहे हैं ।

कैसे कैसे लोग भक्त बनकर कुंभ नहाने जाते है ।

शिव जी के बात पर पार्वती जी को बिस्वास नहीं हुआ । इसलिए माता पार्वती बिली की नहीं प्रभु , ये सारे आपके भक्त हैं। उन सबके भक्ति पर क्या आपको संदेह है ? पार्वती जी के बात को सुन कर शंकर भगवान मुस्कराते हुए बोले कि अगर आपको बिस्वास नहीं है तो आइए हम आपको सभ दिखाते है ।

भगवान शिव बूढ़े का भेस बनाकर गढ़े में चले गए और उस रास्ते से आते जाते सबसे निकालने का गुहार लगाने लगे । लेकिन किसी ने भी उन्हें बाहर नहीं निकाला । फिर बहुत देर बाद एक व्यक्ति आया भी लेकिन उन्हें बाहर निकालने पर खुद फंस जाएगा , ये देख कर वो भी वहा से चुप चाप चला गया ।

पुण्य का असली हकदार कौन है ।

माता पार्वती छुप कर सभ देख रही थी । तब काफी समय बीतने के बाद एक व्यक्ति अपने परिवार के साथ उस रास्ते से जा रहा था  । तभी वो आवाज सुनकर गढ़े के पास गया और बाहर निकालने का प्रयास करने लगा । तब शिव जी उस व्यक्ति से बोले कि भाई अगर आप हमे निकालोगे तो खुद फंस जाओगे ।

लेकिन वो व्यक्ति खुद फसने का परवाह ना करते हुए उन्हें बाहर निकाला । तब भगवान शिव अपने असली रूप में आकर उस व्यक्ति को सर्व मनोकामना पूर्ण का आशीर्वाद दिए । फिर पार्वती जी से बोले कि देख लिए देवी उतने सारे लोग में सिर्फ एक ही इंसान सच्चा भक्त देखने को मिला जो असली पुण्य का हकदार है ।

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