
यह एक हिंदी भक्ति कहानी है जैसे कि बचपन से ही बिन मां का शंभू नाम का एक लड़का था, जिसके पिता कुछ दिन बाद अपना दूसरा शादी कर लिए , ताकि शंभू का देख भाल हो सके । लेकिन शंभू की सौतेली मां कुछ दिन तो ठीक रही , मगर जैसे ही उसका खुद का अपना बेटा हुआ वो शंभू से नफरत करने लगी ।
शंभू के पिता इस बात से बहुत दुखी थे, लेकिन वो अपनी दूसरी पत्नी के सामने मजबूर थे । इसलिए वो चाह कर भी कुछ नहीं कर सके थे और इसी बात का टेंशन के कारण उनका भी देहांत हो गया । शंभू के पिता को मारने के बाद उसकी सौतेली मां कुछ दिन बाद ही शंभू को मार कर घर से निकाल दिया ।

दर दर ठोकर खाने के बाद जब कोई भोलेनाथ के सरण में जाता है तो क्या होता है ।
अब तो शंभू घर से बेघर हो गया , उसका अब इस दुनिया में कोई सहारा नहीं था । शंभू दर दर का ठोकर खाते हुए एक शिव मंदिर के बाहर भूखा पेट ही बैठ गया , पूरा दिन बैठे रहने के बाद साम को उस मंदिर का पुजारी शंभू के पास आकर इसको ऐसे बैठे रहने का कारण पूछा तो शंभू रोते हुए अपना सारा दुख बता दिया ।
तब पुजारी ने शंभू को समझते हुए कहा कि बेटा जिसका कोई नहीं होता उसका भगवान भोले नाथ होते है । इसलिए तुम भोलेनाथ के सरण में रह कर , अपना सभ कुछ इनके ऊपर छोड़ दो , यही तुम्हारे सारे परेशानी दूर करेंगे । शंभू को ये बात समझ में आ गई और उस दिन से वही रहने लगा ।
भगवान भोलेनाथ किसी न किसी बहाने से अपने भक्त का दुख दूर कर ही देते है ।
शंभू रोज सुबह साम भगवान भोलेनाथ का पूजा पाठ करने लगा और वहा पर जो भी प्रसाद चढ़ती थी , वो उसे ही खा कर अपना गुजारा करने लगा । उसे दिन रात भगवान शिव का पूजा करते हुए देख कर कुछ लोग उसे पागल कहते थे और बहुत लोग सच्चे भक्त भी कहते थे ।
उसकी सच्चे भक्ति से भगवान भोलेनाथ बहुत खुश हुए और तभी भोलेनाथ के कृपा से एक दिन बहुत बड़ा सेठ जिसका कोई औलाद नहीं था । वो शंभू को गोद ले लिया और बेटा बना कर उसे बहुत प्यार से अपने साथ रखने लगा । बड़ा होकर शंभू कई सारे कंपनी का मालिक बन गया और बहुत सुखी जीवन बिताने लगा । इसी लिए कहा गया है कि भोलेनाथ की कृपा जिस पर पड़ती है वो रंक से भी राजा बन जाता है ।