अधुरा प्रेम कहानी : एक दिन की बात है
एक दिन घर मे काफी चहल पहल हो रही थी क्यो की घर मे एक शादी थी । गांव मुहल्ला के भी लोग आ जा रहे थे । दुर दुर से काफी मेहमान आए हुवे थे । उनमें मे से कुछ औरते और कुछ लङकी या भी थी । उन्ही लङकीया मे से एक लङकी को देख कर मेरे दिल मे कुछ खलबली सी होने लगी।
क्यो की वो लङकी ऐसी थी जैसे मानो कोई स्वर्ग से अप्सरा उतर कर जमीन पर आ गई हो जब मै पहली। बार उसे अपने घर पर देखा तो मेरे होस उङ गये थे । वैसे तो काफी लङकीया रिलेशन से आई हुई थी ।

लेकिन उसमे बाल आख भी वैसी थी जैसे इसके आख से सराब के प्याले छलक रहे हो । ओर की लाली वैसी थी जैसे गुलाब की कोमल पंखुरी हो । उसे देख कर कई लङके दिवाने कुछ बात ही अलग थी । जिनके गोरा सरीर कद लंबा रेशम जैसी घुंघराले हो गए थे सभकी नजर बाब – बार उसी पर पङ रही थी और मै तो देखकर इस पर फिदा ही हो गया था ।

अपने चाह मे क्या किया
शादी के दिन सभी को कुछ न कुछ काम की जीमेदरी मिली हुई थी । लङकी को भी दुल्हन को सजाने की जीमेदारी मिल गई थी । लङका को शादी का मंडप सजाने का जिम्मेदारी सौंपी गई थी । इसलिए लङका अपने कुछ साथी को लेकर मंडप सजाने मे लग गया ।
लङका मंडप सजा रहा था और अपने मनमे सोच रहा था की भगवान कृपा से अगर लङकी से बात करने का मौका मिल जाता तो उसे अपने मन की सारी बात बता देते । लङका उस लङकी पर पुरी तरह से दिवाना हो गया था । वो अपने मन मे उस लङकी के प्रती तरह तरह के ख्याल सजाने लगा । ये मन ही मन उस लङकी को बहुत दिलो जान से चाहने लगा ।
आखिर मन की बात कैसे हुई
आखिर वो समय आही गई जो की लङका अपने दिल की चाह पुरा कर सके । दोपहर से जादा का समय हो चुका था लेकिन कुछ लङकीया अभी खाना खाने को बाकी थी । एक चाची ने ईसको ही उन सबको खाना खिलाने को कहा ।
लङका को चान्स मिल गया इसलिए झट से जाकर सभको बैठाकर खिलाने लगी । लङका सबको तो वैसे ही खिला रहा था लेकिन उस लङकी को कुछ और चीज भी अच्छा – अच्छा प्लेट मे दे रहा था। लङका को लङकी बार बार देख रही थी ।
कभी -कभी सुस्करा देती थी । लङकी को देख कर मुस्करा देना ये देख कर लङका को और मनोबल मिल गई और मौका देखकर लङका अपने मन की बात उस लङकख को बता दिया । लङकी भी लङके के प्यार को स्वीकार कर ली । शादी के दिन दोनो का प्यार खुब परवान चढा और सुबह मे लङकी अपना गांव जाते समय लङका को अपना मोबाईल नंबर देकर चली गई ताकि आगे भी बात हो सके।