वफादार : समय बतलाता है कि कौन अपना है और कौन पराय ।

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ये एक हिंदी कविता कहानी है जिसमें की एक गांव में धनराज नाम का एक बहुत बड़ा सेठ था , जो कि अपने मेहनत के बल पर चार बड़े बड़े फैक्टरी और चार मिल का मालिक बना था । धनराज के और भी चार भाई थे ,जो कि मेहनत नहीं करना चाहते थे । वो सभ बस बेकाम के इधर से उधर घूमते रहते थे या फिर शराब पीकर जुआ खेलते थे ।

धनराज को अपने भाइयों के प्रति बहुत चिंता लगी रहती थी । इसलिए अपना चारो फैक्ट्री चारो भाइयों के नाम कर दिया । ताकी वो सभ भी सुधार कर अपने अपने जिम्मेदारी में लग जाए । धनराज यही सोचा कि हम मिल से मेहनत कर के फैक्ट्री खड़ा कर लेंगे , बस मेरे भाई सभ खुश रहे ।

इंसान के जीवन मे खुशी के साथ साथ कभी दुखो का पहाड़ भी टूटता है ।

धनराज के पास एक कुत्ता था जिसका नाम गोपी रखा था । धनराज अपने कुत्ते को अपने परिवार के सदस्य की तरह रखता था । धनराज के लड़के राज को भी उस कुत्ते के साथ बहुत लगाव था । राज एक दोस्त के तरह हमेशा उसके साथ लगा रहता था और उसके साथ खेलता रहता था ।

इसी तरह हसी खुशी से दिन बीत रहे थे तभी अचानक धनराज के ऊपर दुखो का पहाड़ टूट पड़ा । इसके चारों मिल में आग लग गई और सभ कुछ जल कर राख हो गया । लेनदार भीं इसे अपना कर्ज मांगने के लिए तबाह करने लगे । इस दुख से धनराज पूरी तरह से टूट गया था ।

बुरे वक्त में ही किसी की परख होती है ।

उसके भाई के फैक्टरी चल रहे थे , इसलिए धनराज अपने भाइयों से मदत मांगा ,लेकिन इसके भाई भी मदत करने से मना कर दिया और साथ छोड़ कर सभ अलग हो गए । अंत में उसे अपना मकान और गाड़ी सभ बेच कर देनदार का कर्जा चुकाना पड़ा । धनराज अब घर से बेघर होकर अपने बीबी बच्चों के साथ दूसरे जगह जाने लगे ।

उसके पीछे उसके कुत्ते भी जाने लगा धनराज कुत्ते को भगाने की बहुत कोशिश किया कि अब मेरे पास तुम्हे खिलाने को कुछ नहीं है । लेकिन वो कुत्ता नहीं माना और उसके पीछे पूछ हिलाते हुए जाने लगा । तब धनराज कहने लगा कि इंसान से तो अच्छा ये कुत्ते ही है । कम से कम बुरे वक्त मे भी साथ तो है ।

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